Thursday, September 6, 2018

वैराग्य दर्शन दुर्लभ पुस्तक

  1.    वैराग्य दर्शन 

चाख चाख सब छाडिया, 

माया रस खारा होय|

नाम सुधारस पीजिए, 

छिन्न बारंबारा होय||

क्यों रिझते हो,
ऊपर की सफाई पर |
वर्क सोने का चिपकाया है,
गोबर की मिठाई पर||